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 यात्रियों के नज़रिए समाज के बारे में उनकी समझ 

(लगभग दसवीं से सत्रहवीं सदी तक)







महिलाओं और पुरुषों ने कार्य की में प्राकृतिक आपदाओं से के लिए व्यापारियों सैनिकों, पुरोहित और तीर्थयात्रियों के रूप में फिर साहस की भावना से प्रेरित होकर पात्राएँ को हैं। किसी नए स्थान पर आते है अथवा बस जाते है. रूप से एक ऐसी दुनिया को समझ पाते हैं जो दुश्य या भौतिक परिवेश के संदर्भ में और साथ ही लोगों को प्रथाओं आया तथा व्यवहार में भिन्न होती है। इनमें से कुछ इन निवा के अनुरूप ढल जाते हैं और अन्य जो कुछ हद तक होते हैं. इन्हें ध्यानपूर्वक अपने में लिखते है जिनमें असामान्य तथा उल्लेखनीय बातों को अधिक महत्व दिया जाता है। दुर्भाग्य से हमारे पास महिलाओं द्वारा छोड़े गए लगभग न के बराबर हैं. हालांकि हम यह जानते हैं कि भी कर ले वृत्तांत अपनी विषयवस्तु के संदर्भ में अलग-अलग प्रकार के होते हैं। कुछ दरबार को गतिविधियों से संबंधित होते हैं, जबकि अन्य धार्मिक विषयों या स्थापत्य के तत्वों और स्मारकों पर केंद्रित होते हैं। उदाहरण के लिए, पंद्रहवीं शताब्दी में विजयनगर शहर (अध्याय 7) के सबसे महत्त्वपूर्ण विवरणों में से एक, हेरात से आए एक राजनयिक अब्दुर रस्टाक समरकंदी से प्राप्त होता है।


कई बार यात्री सुदूर क्षेत्रों में नहीं जाते हैं। उदाहरण के लिए, मुगल साम्राज्य (अध्याय 8 और 9) में प्रशासनिक अधिकारी कभी-कभी साम्राज्य के भीतर ही भ्रमण करते थे और अपनी टिप्पणियाँ दर्ज करते थे। इनमें से कुछ अपने ही देश की लोकप्रिय प्रथाओं तथा जन-वार्ताओं और परंपराओं को समझना चाहते थे।


इस अध्याय में हम यह देखेंगे कि उपमहाद्वीप में आए यात्रियों द्वारा दिए गए सामाजिक जीवन के विवरणों के अध्ययन से किस प्रकार हम अपने अतीत के विषय में ज्ञान बढ़ा सकते हैं। इसके लिए हम तीन व्यक्तियों के वृत्तांतों पर ध्यान देंगे: अल-विरूनी, जो ग्यारहवीं शताब्दी में उज्बेकिस्तान


1. अल- बिरूनी तथा किताबा-उल-हिन्द

 1.1 ख़्वारिज्म से पंजाब तक


अल-बिरूनी का जन्म आधुनिक उज्बेकिस्तान में स्थित ख़्वारिज्म में सन् 973 में हुआ था। ख्वारिज्म शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र था और अल बिरूनी ने उस समय उपलब्ध सबसे अच्छी शिक्षा प्राप्त की थी। वह कई भाषाओं का ज्ञाता था जिनमें सीरियाई, फ़ारसी, हिब्रू तथा संस्कृत शामिल हैं। हालांकि वह यूनानी भाषा का जानकार नहीं था पर फिर भी वह प्लेटो तथा अन्य यूनानी दार्शनिकों के कार्यों से पूरी तरह परिचित था जिन्हें उसने अरबी अनुवादों के माध्यम से पढ़ा था। सन् 1017 ई. में ख्वारिज्म पर आक्रमण के पश्चात सुल्तान महमूद यहाँ के कई विद्वानों तथा कवियों को अपने साथ अपनी राजधानी ग़ज़नी ले गया। अल बिरूनी भी उनमें से एक था। वह बंधक के रूप में ग़ज़नी आया. था पर धीरे-धीरे उसे यह शहर पसंद आने लगा और सत्तर वर्ष को आयु में अपनी मृत्यु तक उसने अपना बाकी जीवन यहीं बिताया।


ग़ज़नी में ही अल बिरूनी की भारत के प्रति रुचि विकसित हुई। यह कोई असामान्य बात नहीं थी। आठवीं शताब्दी से ही संस्कृत में रचित खगोल विज्ञान, गणित और चिकित्सा संबंधी कार्यों का अरबी भाषा में अनुवाद होने लगा था। पंजाब के ग़ज़नवी साम्राज्य का हिस्सा बन जाने के बाद स्थानीय लोगों से हुए संपर्कों ने आपसी विश्वास और समझ का वातावरण बनाने में मदद की। अल बिरूनी ने ब्राह्मण पुरोहितों तथा विद्वानों के साथ कई वर्ष बिताए और संस्कृत, धर्म तथा दर्शन का ज्ञान प्राप्त किया। हालाँकि उसका यात्रा कार्यक्रम स्पष्ट नहीं है फिर भी प्रतीत होता है कि उसने पंजाब और उत्तर भारत के कई हिस्सों की यात्रा की थी।


उसके लिखने के समय यात्रा वृत्तांत अरबी साहित्य का एक मान्य हिस्सा बन चुके थे। ये वृत्तांत पश्चिम में सहारा रेगिस्तान से लेकर उत्तर में वोल्गा नदी तक फैले क्षेत्रों से संबंधित थे। इसलिए, हालाँकि


यात्रियों के नजरिए


1500 ई. से पहले भारत में अल बिरूनी को कुछ ही लोगों ने पढ़ा होगा, भारत से बाहर कई अन्य लोग संभवतः ऐसा कर चुके हैं।


1.2 किताब-उल-हिन्द


अरबी में लिखी गई अल-बिरूनी की कृति किताब-उल-हिन्द की भाषा सरल और स्पष्ट है। यह एक विस्तृत ग्रंथ है जो धर्म और दर्शन, त्योहारों, खगोल विज्ञान, कीमिया, रीति-रिवाजों तथा प्रथाओं, सामाजिक जीवन, भार- तौल तथा मापन विधियों, मूर्तिकला, कानून, मापतंत्र विज्ञान आदि विषयों के आधार पर अस्सी अध्यायों में विभाजित है।


सामान्यतः ( हालाँकि हमेशा नहीं) अल बिरूनी ने प्रत्येक अध्याय में एक विशिष्ट शैली का प्रयोग किया जिसमें आरंभ में एक प्रश्न होता था. फिर संस्कृतवादी परंपराओं पर आधारित वर्णन और अंत में अन्य संस्कृतियों के साथ एक तुलना। आज के कुछ विद्वानों का तर्क है कि इस लगभग ज्यामितीय संरचना, जो अपनी स्पष्टता तथा पूर्वानुमेयता के लिए उल्लेखनीय है. का एक मुख्य कारण अल- विरूनी का गणित की ओर झुकाव था।


अल बिरूनी जिसने लेखन में भी अरबी भाषा का प्रयोग किया था, ने संभवतः अपनी कृतियाँ उपमहाद्वीप के सीमांत क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए लिखी थीं। वह संस्कृत, पाली तथा प्राकृत ग्रंथों के अरबी भाषा में अनुवादों तथा रूपांतरणों से परिचित था- इनमें दंतकथाओं से लेकर खगोल विज्ञान और चिकित्सा संबंधी कृतियाँ सभी शामिल थीं। पर साथ ही इन ग्रंथों की लेखन सामग्री शैली के विषय में उसका दृष्टिकोण आलोचनात्मक था और निश्चित रूप से वह उनमें सुधार करना चाहता था।

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