इब्न बतूता का रिहला | मुगल सेना के साथ यात्रा

  1. इब्न बतूता का रिहला


 एक आरंभिक विश्व यात्री



इन बतूता द्वारा अरबी भाषा में लिखा गया उसका यात्रा रिला कहा जाता है. श्री शताब्दी में भारतीय सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन के विषय में बहुत ही प्र रोचक जानकारियाँ देता है। मोरक्कों के इस यात्री का जन् सबसे सम्मानित तथा शिक्षित परिवारों में से एक, जो अथवा शरिया पर अपनी विशेषज्ञता के लिए प्रसिद्ध था, में हुआ था अपने परिवार की परंपरा के अनुसार इन बता ने कम उम्र में ही साहित्यिक तथा शास्त्ररूद शिक्षा हासिल की।


अपनी श्रेणी के अन्य सदस्यों के विपरीत, इन बता पुस्तकों के स्थान पर यात्राओं से अर्जित अनुभव को ज्ञान का अधिक महत्वपूर्ण स्रोत मानता था। उसे यात्राएँ करने का बहुत शौक था और वह नए-नए देशों और लोगों के विषय में जानने के लिए दूर-दूर के क्षेत्र तक गया। 1332-33 में भारत के लिए प्रस्थान करने से पहले वह मक्का की तीर्थ यात्राएँ और सीरिया, इराक, फारस, यमन ओमान तथा पूर्वी अफ्रीका के कई तटीय व्यापारिक बंदरगाहों की यात्राएँ कर चुका था।



मध्य एशिया के रास्ते होकर इन बतूता सन् 1333 में स्थलमार्ग से सिंध पहुँचा। उसने दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के बारे में सुना था और कला और साहित्य के एक दयाशील संरक्षक के रूप में उसकी आकर्षित हो बतूता ने मुल्तान और उच्छ के रास्ते होकर दिल्ली की ओर प्रस्थान किया। सुल्तान उसकी विद्वता से प्रभावित हुआ और उसे दिल्ली का काजी या न्यायाधीश नियुक्त किया। वह इस पद पर कई वर्षों तक रहा, पर फिर उसने विश्वास खो दिया और उसे कारागार में कैद कर दिया गया। बाद में सुल्तान और उसके बीच की होने के बाद उसे राजकीय सेवा में पुनर्स्थापित किया गया और 1342 ई. में मंगोल शासक के पास सुल्तान के दूत के रूप में चीन जाने का आदेश दिया गया।


अपनी नयी नियुक्ति के साथ इन बतूता मध्य भारत के रास्ते मालाबार तट की ओर बढ़ा। मालाबार से वह मालद्वीप गया जहाँ यह अठारह महीनों तक काजी के पद पर रहा पर अंतत: उसने श्रीलंका जाने का निश्चय किया। बाद में एक बार फिर वह मालाबार तट तथा मालद्वीप गया और चीन जाने के अपने कार्य को दोबारा शुरू करने से पहले वह तथा असम भी गया। वह जहाज से सुमात्रा गया और सुमात्रा से एक अन्य में चीनी दरगाह


जायंतुन (जो आज क्यान के नाम से जाना जाता है) गया। उसने व्यापक रूप से चीन में यात्रा की और वह बीजिंग तक गया लेकिन में यहाँ लंबे समय तक नहीं ठहरा। 1347 में उसने वापस अपने घर जाने का निश्चय किया। चीन के विषय में उसके वृत्तांत की तुलना ( पोलो, जिसने तेरहवीं शताब्दी के अंत में वेनिस से चलकर चीन (और भारत की भी) की यात्रा की थी. के वृत्तांत से की जाती है।

यात्रियों के नजरिए

इब्नबतूता ने नवीन संस्कृतियों, लोगों, आस्थाओं मान्यताओं आदि के विषय में अपने अभिमत को सावधानी तथा कुशलतापूर्वक दर्ज किया। हमें यह ध्यान में रखना होगा कि यह विश्व यात्री चौदहवीं शताब्दी में यात्राएँ कर रहा था, जब आज की तुलना में यात्रा करना अधिक कठिन जोखिम भरा कार्य था। इब्न बतूता के अनुसार उसे मुल्तान में दिल्ली की यात्रा में चालीस और सिंध से दिल्ली की यात्रा में लगभग पचास दिन का समय लगा था। दौलताबाद से दिल्ली की दूरी चालीस जबकि ग्वालियर से दिल्ली की दूरी दस दिन में तय की जा सकती थी।


 2. मुगल सेना के साथ यात्रा


बर्नियर ने कई बार मुगल सेना के साथ यात्राएँ की। यहाँ सेना के कश्मीर कूच के संबंध में दिए गए विवरण से एक अंश दिया जा रहा है :


इस देश की प्रथा के अनुसार मुझसे दो अच्छे तुर्कमान घोड़े देखने की अपेक्षा की जाती है और मैं अपने साथ एक शक्तिशाली फ़ारसी ऊँट तथा चालक, अपने घोड़ों के लिए एक साईस. एक खानसामा तथा एक सेवक जो हाथ में पानी का पात्र लेकर मेरे घोड़े के आगे चलता है, भी रखता हूँ। मुझे हर उपयोगी वस्तु दी गई है जैसे औसत आकार का एक तंबू. एक दरी. चार बहुत कठोर पर हलके वेतों से बना एक छोटा बिस्तर, एक तकिया, एक विलौना, भोजन के समय प्रयुक्त गोलाकार चमड़े के मेजपोश रंगे हुए कपड़ों के कुछ अंगौछे / नैपकिन, खाना बनाने के सामान से भरे तीन छोटे झोले जो सभी एक बड़े झोले में रखे हुए थे, और यह झोला भी एक लंबे-चौड़े तथा सुदृढ़ दुहरे बोरे अथवा चमड़े के पट्टों से बने जाल में रखा है। इसी तरह इस दुहरे बोरे में स्वामी और सेवकों की खाद्य सामग्री साम्राज्य कपड़े तथा वस्त्र रखे गए हैं। मैंने ध्यानपूर्वक पाँच या छह दिनों के उपभोग के लिए बढ़िया चावल, सौंफ (एक प्रकार का शाक (पौधा) की सुगंध वाली मीठी रोटी, नींबू तथा चीनी का भंडार साथ रखा है। साथ ही मैं दही को टाँगने और पानी निकालने के लिए प्रयुक्त छोटे. लोहे के अंकुश वाला झोला लेना भी नहीं भूला हूँ। इस देश में नींबू के शरबत और दही से अधिक ताज़गी भरी वस्तु कोई नहीं मानी जाती।

बर्नियर द्वारा दी गई सूची में कौन सी वस्तुएँ हैं जो आज आप यात्रा में साथ ले जाएँगे? यात्रा करना अधिक असुरक्षित भी था; इब्न बतूता ने कई बार डाकुओं के समूहों द्वारा किए गए आक्रमण झेले थे। यहाँ तक कि वह अपने साथियों के साथ कारवाँ में चलना पसंद करता था, पर भी राजमार्गों के लुटेरों को रोका नहीं जा सका। मुल्तान से दिल्ली की यात्रा के दौरान उसके कारवाँ पर आक्रमण हुआ, और उसके कई साथी यात्रियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा जो जीवित बचे, जिनमें इब्न बतूता भी शामिल था, बुरी तरह से घायल हो गए थे।


3. जिज्ञासाओं का उपभोग


जैसाकि हमने देखा है कि इब्न बतूता एक हठीला यात्री था जिसने उत्तर पश्चिमी अफ़्रीका में अपने निवास स्थान मोरक्को वापस जाने से पूर्व कई वर्ष उत्तरी अफ्रीका, पश्चिम एशिया, मध्य एशिया के कुछ भाग (हो सकता है वह रूस भी गया हो), भारतीय उपमहाद्वीप तथा चीन को यात्रा की थी। जब वह वापस आया तो स्थानीय शासक ने निर्देश दिए कि उसकी कहानियों को दर्ज किया जाए।




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