Jeevan ki chunotiyon ka samna Manovigyan chapter 3 | जीवन की चुनौतियों का सामना |

 राज अपनी अंतिम परीक्षा, जो कल सवरे होने वाली है, के लिए अध्ययन कर रहा है। उसने रात में एक बजे तक पढ़ाई की फिर जब वह अपने ध्यान को एकाग्र करने में असमर्थ होने लगा तो उसने प्रातः छह बजे का अलार्म लगाया और सोने का प्रयास करने लगा। चूँकि वह बेहद तनावग्रस्त हैं अतः वह बिस्तर पर करवटें बदलता रह जाता है। उसके मन में इस प्रकार के विचार कांधते हैं कि वह अपनी पसंद के विषय में उतने अंक पाने में असमर्थ हो गया है जितने कि उस विषय को आगे चुनने के लिए आवश्यक हैं। वह अपने आपको मित्रों के साथ मौज-मस्ती करने तथा परीक्षा के लिए पूरी तैयारी न करने के लिए दोषी ठहराता है। प्रातः काल वह भारी सर लिए उठता है, नाश्ता भी नहीं कर पाता और किसी तरह परीक्षा के समय तक स्कूल पहुंचता है। वह प्रश्नपत्र को खोलता है तो उसका हृदय जोर से धड़क रहा होता है, हाथ पसीने से गोले होते हैं और उसे लगता है कि उसका मन पूर्णतया खाली हो गया है।


आपमें से कुछ लोगों ने राज के समान कभी-न-कभी अनुभव किया होगा। परीक्षा की चुनौती सभी विद्यार्थियों के लिए एक समान होती है। संभवत: आप अभी से ही अपनी जीवन-वृत्ति के संबंध में विचार कर रहे हों। यदि वह आपकी अपनी पसंद की न हो तो क्या होगा? क्या आप हार मान लेंगे? जीवन के हर मोड़ पर चुनौतियाँ होती है। उस बालक के बारे में सोचिए जिसके माता-पिता की मृत्यु बहुत कम उम्र में ही हो गई हो और उसका पालन-पोषण करने वाला कोई न हो; वह युवती जिसके पति की मृत्यु किसी कार दुर्घटना में हो गई हो; वे माता-पिता जो शारीरिक या मानसिक रूप से चुनौतीग्रस्त बच्चों को पाल-पोसकर बड़ा करते हैं; वे लड़के-लड़कियाँ जो कॉल सेंटर में लंबी रात व्यतीत करने के बाद दिन में अपनी नींद पूरी करने का प्रयास करते हैं। अपने आस-पास दृष्टि डालिए तो आप पाएंगे की जीवन एक बड़ी चुनौती है। हम सब इन चुनौतियों से अपने-अपने तरीके से निपटते हैं। हममें से कुछ ऐसा करने में सफल होते हैं किंतु कुछ लोग उन दबावों के सामने परास्त हो जाते हैं। जीवन की चुनौतियाँ अनिवार्य रूप से दबाव उत्पन्न करने वाली नहीं होती हैं। बहुत कुछ इस पर निर्भर करता है कि उस चुनौती का अवलोकन किस प्रकार किया जाता है। क्रिकेट की टीम में ग्यारहवें नंबर का बल्लेबाज एक तेज गेंदबाज की गेंद का मुकाबला करते हुए उसकी गेंद का अवलोकन, पारी की शुरुआत करने वाले बल्लेबाज से भिन्न तरह से करेगा जो कि इस तरह की चुनौती की उत्सुकता से प्रतीक्षा करेगा। यह कहावत है कि चुनौती के सामने ही किसी की सर्वोत्तम क्षमता का पता चलता है। इस अध्याय में हम यह देखने का प्रयास करेंगे कि कैसे कोई जीवन दशा एक चुनौती अथवा दबाव का एक कारण बन जाती है। हम यह भी देखेंगे कि लोग जीवन की विभिन्न चुनौतियों एवं दबावपूर्ण परिस्थितियों के प्रति कैसी प्रतिक्रियाएँ करते हैं।


की प्रकृति, प्रकार एवं स्रोत


व्यस्त सुबह को जब आप सड़क पार करने क कर रहे हों तो कुछ देर के लिए आप दबाव का सकते हैं। लेकिन चूँकि आप खतरे के प्रति बन तथा जागरूक होते हैं, इसलिए आप सड़क कर लेते हैं। किसी चुनौती के सामने होने पर हम करते हैं तथा चुनौती से निपटने के लिए अपने


सारे संसाधनों और अवलंब व्यवस्था को भी संघटित कर देते हैं। सभी चुनौतियाँ समस्याएँ तथा कठिन परिस्थितियाँ हमें दबाव (stress) में डालती हैं। अतः यदि दबाव का ठीक से प्रबंधन किया जाए तो वह व्यक्ति की अतिजीविता की संभावना में वृद्धि करता है। दबाव विद्युत की भाँति होते हैं। दबाव ऊर्जा प्रदान करते हैं, मानव भाव प्रबोधन में वृद्धि करते हैं तथा निष्पादन को प्रभावित करते हैं। तथापि, यदि विद्युत धारा अत्यंत तीव्र हो तो वह बल्ब की बत्ती को गला सकती है, विद्युत


द्वारा भी समझाया जाता है जो व्यक्ति के लिए विघटनकारी होती हैं। दबावकारक (stressor) वे घटनाएँ हैं जो हमार -शरीर में दबाव उत्पन्न करती हैं। ये शोर, भीड़, खराब संबंध या रोज़ स्कूल अथवा दफ्तर जाने की घटनाएँ हो सकती हैं। बाह्य प्रतिबलक के प्रति प्रतिक्रिया को तनाव (strain) कहते हैं (चित्र 3.1 देखें)।


दबाव कारण तथा प्रभाव दोनों से संबद्ध हो गया है तथापि दबाव का यह दृष्टिकोण भ्रांति उत्पन्न कर सकता है। हैंस सेल्ये मूल्यांकन त (Hans Selye), जो आधुनिक दबाव शोध के जनक कह जाते हैं, ने दबाव को इस प्रकार परिभाषित किया है कि यह “किसी भी माँग के प्रति शरीर की अविशिष्ट अनुक्रिया है" दबाव प्रक्रि अर्थात खतरे का कारण चाहे जो भी हो व्यक्ति प्रतिक्रियाओं के दबावपूर्ण प समान शरीरक्रियात्मक प्रतिरूप से अनुक्रिया करेगा। अनेक सीमा तक शोधकर्ता इस परिभाषा से सहमत नहीं हैं क्योंकि उनका अनुभव है कि दबाव के प्रति अनुक्रिया उतनी सामान्य तथा मूल्यांकन में अविशिष्ट नहीं होती है जितना सेल्ये का मत है। भिन्न-भिन्न प्राथमिक म दबावकारक दबाव प्रतिक्रिया के भिन्न-भिन्न प्रतिरूप उत्पन्न कर सकते हैं एवं भिन्न व्यक्तियों की अनुक्रियाएँ विशिष्ट प्रकार की हो सकती हैं। आप खेल का प्रारंभ करने वाले आरंभिक बल्लेबाज का दृष्टांत याद कर सकते हैं, जिसका उल्लेख पहले हुआ था। हममें से प्रत्येक व्यक्ति परिस्थिति को अपनी दृष्टि से देखेगा और माँगों तथा उनका सामना करने की हमारी क्षमता का प्रत्यक्षण ही यह निर्धारित करेगा कि हम दबाव महसूस कर रहे हैं अथवा नही


दबाव कोई ऐसा घटक नहीं है जो व्यक्ति के भीतर या पर्यावरण में पाया जाता है। इसके बजाय, यह एक सतत चलने वाली प्रक्रिया में सन्निहित है जिसके अंतर्गत व्यक्ति - अपने सामाजिक एवं सांस्कृतिक पर्यावरणों में कार्य-संपादन करता है, इन संघर्षों का मूल्यांकन करता है तथा उनसे उत्पन्न

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