खाद्य संसाधन पशु

 खाद्य संसाधन पशु



सभ्यता के विकास के प्रारंभ से ही मनुष्य पशुओं का उपयोग अपने भोजन और विभिन्न कार्यों के लिए करता आ रहा है। कृषि के विकास से पहले मानव भोजन के लिए पशुओं के शिकार पर ही निर्भर था। बाद में उसने पशुपालन को अपनाया।


पशुपालन


पशुपालन (animal husbandry) विज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत पालतू पशुओं के भोजन, आवास, स्वास्थ्य, प्रजनन आदि पक्षों का अध्ययन किया जाता है। इसके अध्ययन से निम्नलिखित क्षेत्रों में इच्छित परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।



1. दुग्ध उत्पादन (Milk production) दुधारू पशुओं की - अत्यधिक संख्या होने के बावजूद हमारे देश में दूध का उत्पादन संतोषजनक नहीं है। हमारे देश में एक गाय औसतन करीब 200 kg दूध प्रतिवर्ष देती है, जबकि यह औसत आस्ट्रेलिया और नीदरलैंड में 3500 kg तथा स्वीडन में 3000 kg प्रतिवर्ष है। अतः पशुपालन विज्ञान के अध्ययन से उन्नत नस्ल के अधिक दुधारू पशु प्रजनन के द्वारा प्राप्त किए जा सकते हैं। उनके रख-रखाव की उचित व्यवस्था की जा सकती है।


2. मांस उत्पादन (Meat production ) - जनसंख्या के अनुरूप भोजन की बढ़ती आवश्यकता की पूर्ति के लिए अधिक पुष्ट, मांसल तथा जल्दी बढ़नेवाली नस्ल की मुर्गियाँ प्रजनन के द्वारा प्राप्त की जा सकती हैं। इसी प्रकार इच्छित गुण वाले, उन्नत नस्ल के भेंड़, बकरी, सुअर आदि मांस उत्पादक पशुओं को प्रजनन के द्वारा पशुविज्ञान के अध्ययन से प्राप्त किया जा सकता है। हमारे देश में प्रति व्यक्ति भोजन के रूप में मांस की वार्षिक खपत सिर्फ 131 g है जबकि अमेरिका में यह 1318 kg है।


3. अंडा उत्पादन (Egg production ) - जनसंख्या के अनुरूप हमारे देश में अंडे की खपत दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। बढ़ते माँगों की पूर्ति के लिए अंडा देनेवाली उन्नत किस्म की मुर्गियों


प्रजनन के द्वारा प्राप्त की जाती हैं। हमारे देश में भोजन के रूप में अंडे की प्रति व्यक्ति वार्षिक खपत मात्र 6 है जबकि अमेरिका में यह 295 है।


4. मछली उत्पादन (Fish production) – हमारे देश में मृदु जल की मछलियों (fresh-water fishes) के उत्पादन बढ़ाने की संभावना बहुत अधिक है। इस विज्ञान के अध्ययन से अंडे से बच्चे (fish fries) का सफल निष्कासन, मछलियों के आकार में समुचित वृद्धि, उनका उचित रख-रखाव, रोगों से बचाव आदि संबंधित बातें सीखी जा सकती हैं।


5. पशुओं के मल-मूत्र का समुचित उपयोग (Proper utilization of animal excreta) – हमारे देश में गोबर का उपयोग सामान्यतः जलावन के रूप में किया जाता है। पशुओं के मल-मूत्र से बायोगैस (biogas) का उत्पादन हो सकता है। इनका उपयोग खाद के रूप में भी किया जा सकता है।


6. कार्य क्षमता में बढ़ोतरी (Increase in working efficiency) -पश्चिमी देशों की अपेक्षा हमारे देश के पालतू पशुओं में कार्य करने की क्षमता बहुत कम है। पशुपालन के सिद्धांतों का सही अनुपालन कर ऐसे पालतू पशुओं की कार्यक्षमता बढ़ाई जा सकती है।


7. ऊन उत्पादन (Wool production) -अन्य ऊन- उत्पादक देशों की तुलना में हमारा देश बहुत पीछे है। पशुपालन के सिद्धांतों और तकनीक का इस्तेमाल कर ऊन- उत्पादक भेंड़ों, अंगोरा किस्म के खरगोशों की नस्ल सुधारकर ऊन का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है।


पशुधन और उसके प्रबंधन


पशुधनों का पालन-पोषण हमारे देश की प्राचीन परंपरा है। पशुधनों का पालन-पोषण आर्थिक लाभ; जैसे दूध, मांस, चमड़ा आदि के उत्पादन तथा आर्थिक विकास हेतु उनके श्रम का उपयोग करने के उद्देश्य से किया जाता है।


गाय - हमारे देश में गायों और भैंसों की लगभग 32 प्रजातियाँ हैं। इनमें प्रमुख हैं— साहीवाल, गीर, रेडसिंधी, थर्पाकर



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