Parmanu Anu Or Aayan




 1. पिछले अध्यायों में हमलोग पदार्थ की प्रकृति और तत्त्वों के संयोग से यौगिकों के निर्माण के संबंध में पढ़ चुके हैं। किंतु अब प्रश्न उठता है कि तत्त्व किस प्रकार संयोग करके यौगिक बनाते हैं। क्या ऐसा करने में वे कुछ निश्चित नियमों का पालन करते हैं?
प्राचीन भारतीयों और ग्रीक दार्शनिकों का विश्वास था कि हमारे चारों तरफ फैली अनेक वस्तुएँ पाँच मूल तत्त्वों (क्षिति, अग्नि, जल, वायु और गगन) के संयोग से बनी हैं।
भारतीय दार्शनिक कणाद (600 BC) के मतानुसार सभी पदार्थ अत्यंत सूक्ष्म, शाश्वत और अगोचर कणों से बने होते हैं, जिन्हें परमाणुस (paramanus) कहते हैं। संस्कृत में परम (param) का अर्थ 'अंतिम' और अणु (anu) का अर्थ 'कण' होता है। ये परमाणुस विभिन्न अनुपात में संयोग करके पदार्थ का निर्माण करते हैं। ग्रीक दार्शनिक डेमोक्रीट्स (Democrites) और लूसीपस (Leucippus) के भी मत ऐसे ही थे। इन लोगों ने अंतिम कणों को ऐटोमोस (atomos) कहा, जिसका अर्थ ग्रीक भाषा में अविभाज्य होता है।
पदार्थ के संबंध में उपर्युक्त सभी दार्शनिकों के विचार लगभग एक समान थे; अर्थात पदार्थ अतिसूक्ष्म कणों के बने हुए हैं और कुछ निर्माणकारी ब्लॉक्स (building blocks) से ही अनेक प्रकार की वस्तुएँ बनती हैं।
किंतु पदार्थ-संबंधी उपर्युक्त विचारों की सत्यता जानने का कोई प्रायोगिक प्रमाण नहीं होने से ये बहुत समय तक मान्य नहीं हो सके । परंतु, 18वीं सदी के अंत में लभ्वाजे (Lavoisier) एवं -अन्य वैज्ञानिकों ने रासायनिक संयोग के संबंध में कई नियमों का प्रतिपादन किया।
रासायनिक संयोग के नियम (Laws of Chemical Combination)
लभ्वाजे, प्राउस्ट, जॉन डाल्टन तथा कुछ अन्य वैज्ञानिकों द्वारा किए गए प्रयोगों के फलस्वरूप पदार्थ के संघटन और रासायनिक अभिक्रियाओं के संबंध में कुछ नियमों का प्रतिपादन हुआ। तत्त्वों के संयोग से यौगिकों के बनने की प्रक्रियाएँ कुछ निश्चित नियमों के
अनुसार होती हैं, जिन्हें रासायनिक संयोग के नियम कहते हैं।. 1. पदार्थ की अनश्वरता का नियम (The law of conservation of matter) — इस नियम का प्रतिपादन 1774 में लभ्वाजे ने किया
था। इस नियम के अनुसार, रासायनिक अभिक्रियाओं के फलस्वरूप पदार्थों का कुल द्रव्यमान अपरिवर्तित रहता है।
मान लें कि A और B के बीच अभिक्रिया होने पर C और D
दो प्रतिफल बनते हैं।
A+B - C + D
मान लें कि A के ग्राम और B के ग्राम अभिक्रिया करके a c ग्राम C और d ग्राम D बनाते हैं। तब पदार्थ की अनश्वरता के नियम के अनुसार,
a+b=c+d
लभ्वाजे द्वारा किए गए इस प्रयोग से इस नियम का सत्यापन किया जा सकता है। इन्होंने एक रिटॉर्ट में टिन की एक ज्ञात मात्रा लेकर रिटॉर्ट के मुँह को गर्म करके बंद कर दिया। इसके पश्चात रिटॉर्ट को टिन सहित तौल लिया गया। अब रिटॉर्ट को कई दिनों तक गर्म किया गया। इसके फलस्वरूप टिन का एक अंश रिटॉर्ट में उपस्थित ऑक्सीजन के साथ संयोग करके ऑक्साइड में परिवर्तित हो गया। अब रिटॉर्ट को ठंडा करके तौल लिया गया। यह भार प्रारंभिक भार के बराबर पाया गया। इससे स्पष्ट हो जाता है कि यद्यपि टिन और ऑक्सीजन के बीच अभिक्रिया हुई है, फिर भी अभिक्रिया के पूर्व और अभिक्रिया के पश्चात पदार्थों के कुल परिमाण में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। अतः इस प्रयोग से निष्कर्ष निकलता है कि रासायनिक अभिक्रिया के फलस्वरूप पदार्थ संरक्षित रहता है, वह नष्ट नहीं होता।
कार्यकलाप
दो परखनलियों को एक काँच की नली द्वारा चित्रानुसार जोड़ देते है। एक परखनली में सिल्वर नाइट्रेट का जलीय विलयन और दूसरी परखनली में सोडियम क्लोराइड का जलीय विलयन लेकर दोनों परखनलियों के मुँह को काग से कसकर बंद कर देते हैं। संपूर्ण उपकरण को इस प्रकार से तौलते हैं कि दोनों विलयन परस्पर मिश्रित नहीं हो। अब उपकरण को थोड़ा टेढ़ा करके दोनों विलयनों को परस्पर मिश्रित कर दिया जाता है। दोनों विलयनों के बीच अभिक्रिया के फलस्वरूप उपकरण के अंदर दही-जैसा सफेद अवक्षेप बनता है। उपकरण को पुनः तौल लिया जाता है। इसके पहले का भार और अंतिम भार में कोई अंतर नहीं रहता है। दोनों वजन एक समान होते हैं। इससे स्पष्ट है कि यद्यपि सिल्वर नाइट्रेट
2. निश्चित अनुपात का नियम (The law of constant or definite proportions) इस नियम का प्रतिपादन 1789 में प्राउस्ट (Proust) ने किया था। इस नियम के अनुसार, किसी रासायनिक यौगिक के सभी शुद्ध नमूनों में एक ही प्रकार के तत्त्व भार के विचार से हमेशा एक निश्चित अनुपात में परस्पर संयुक्त रहते हैं।
उदाहरण- (i) जल हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का एक यौगिक है। यह विभिन्न स्रोतों (नदी, समुद्र, कुआँ आदि) से प्राप्त किया जाता है तथा इसे प्रयोगशाला में भी संश्लेषित किया जा सकता है। हम किसी भी स्रोत से जल प्राप्त करें, सदा पाएँगे कि भार के विचार से उसके 9 भाग में 1 भाग हाइड्रोजन और 8 भाग ऑक्सीजन है। अतः, जल में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का यह अनुपात सदैव निञ्चित रहता है।
(ii) कार्बन डाइऑक्साइड कार्बन और ऑक्सीजन का एक यौगिक है। कार्बन डाइऑक्साइड चाहे किसी भी माध्यम से प्राप्त किया जाए, हम पाएँगे कि भार के विचार से उसके 11 भाग में हमेशा 3 भाग कार्बन और 8 भाग ऑक्सीजन रहता है। यह अनुपात कार्बन डाइऑक्साइड के बनाने की विधि या उसके स्रोत पर निर्भर नहीं करता है।
इसी प्रकार, सभी रासायनिक यौगिकों का संघटन निश्चित
होता है।
उपर्युक्त नियमों की व्याख्या करने में वैज्ञानिक सफल नहीं हुए। किंतु इस समस्या का समाधान इंगलैंड के एक स्कूल शिक्षक जॉन डाल्टन (1766-1844) ने किया। सर्वप्रथम 1801 में डाल्टन ने परमाणु की संरचना संबंधी एक नियम का प्रतिपादन किया जिसे डाल्टन का परमाणु सिद्धांत (Dalton's atomic theory) कहते हैं। इस सिद्धांत की सहायता से पदार्थ की अनश्वरता का नियम तथा निश्चित अनुपात के नियम की स्पष्ट व्याख्या हो जाती है।

Daltan ke Parmanu sindhant ki manyatanyan


(Assumptions Of Daltan atomic theory)
डाल्टन के परमाणु सिद्धांत की मुख्य बातें निम्नलिखित है।
1. सभी पदार्थ अत्यंत सूक्ष्म कणों से बने होते हैं जि परमाणु (atoms) कहते हैं और ये परमाणु खंडित नह किए जा सकते हैं।
2. किसी भी रासायनिक प्रक्रिया द्वारा परमाणुओं का तो निर्माण ही किया जा सकता है और न ही नाश अर्थात परमाणु अनवर होते हैं।
3. किसी तत्त्व के सभी परमाणु समान होते हैं; अर्थात किसी तत्व के सभी परमाणुओं के आकार, द्रव्यमान रासायनिक गुण आदि सदृश होते हैं।
4. विभिन्न तत्त्वों के परमाणु विभिन्न आकार, द्रव्यमान, रासायनिक गुण वाले होते हैं।
5. रासायनिक संयोग में दो या अधिक तत्त्वों के परमाणु
परस्पर संयोग करके यौगिक बनाते हैं। 6. रासायनिक संयोग में विभिन्न तत्त्वों के परमाणु सरल
सांख्यिक अनुपात (1: 1, 12, 2:3 आदि) में संयोग
करते हैं।
7. एक हो तन्व के परमाणु एक से अधिक अनुपात में दूसरे तत्त्व के परमाणु के साथ एक से अधिक यौगिक बना सकते हैं।
उदाहरण के लिए, कार्बन और ऑक्सीजन के परस्पर संयोग से बने कार्बन मोनोक्साइड (CO) में कार्बन का एक परमाणु ऑक्सीजन के एक परमाणु के साथ संयोग करता है, जबकि कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) में कार्बन का एक परमाणु ऑक्सीजन के दो परमाणुओं के साथ संयोग करता है। अतः, कार्बन मोनोक्साइड में कार्बन और ऑक्सीजन परमाणुओं का अनुपात 1 1 है, जबकि कार्बन डाइऑक्साइड में यह अनुपात 1. 2 है।
डाल्टन के परमाणु सिद्धांत के गुण
डाल्टन का परमाणु सिद्धांत अनेक प्रकार से उपयोगी सिद्ध हुआ है।
1. इस सिद्धांत की सहायता से रासायनिक संयोग के नियमों की व्याख्या की जा सकती है।
2. सर्वप्रथम डाल्टन ने ही तत्त्व के अंतिम कण (परमाणु)) और यौगिक के अंतिम कण (यौगिक परमाणु) में विभेद किया। यौगिक का अंतिम कण आगे चलकर अनु कहलाया।

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